Monday, August 10, 2015

पौलिना ...Story of Paulina

पौलिना ...

याद नहीं क्या वजह रही होगी पौलिना के पास बैठने की, आज पचीस तीस साल पुरानी बात को बिलकूल ज्यो का त्यों कह सकू मुमकिन नहीं . पर ये मुमकिन है कि जो बाते उस समय की थोड़ी भी याद है उसे आज की नज़र से देख सकू. पौलिना क्लास के पचहतर लडकियों में से एक थी , मै उसके पास शायद इसलिए बैठी क्योकि जब पीछे दिल किया की बैठू तो जगह उसी के पास दिखी . मुझे जीतना याद है वो छठी क्लास में शुरू दिन से नहीं थी , दो तीन महीने बाद आई थी दो तीन और संथाली लडकियों के साथ. उस वक्त की रमा के नज़र में सब लडकिया थी , सब दोस्त थी , सब सहपाठी थी, सब इक उम्र की थी , सब के क्लास में होने का एक ही मकसद - पढना कुछ और सीखना . मेरे सोच का दायरा उसके बाहर नहीं देखता था. पर पौलिना के पास बीठा कर जीवन ने मुझे अपने सोच के दायरों को तोड़ने का निर्णय लिया था शायद .

क्लास में शायद चार पौलिना थी , कोई हेम्ब्रम , कोई हंसदा कोई टुडू , कोई मरांडी मेरी इस पौलिना का शेष नाम क्या था याद नहीं , पर हां उसकी रूप रेखा आज भी मन मस्तिस्क पर साफ़ उभरी हुई है . वैसे तो आदिवासी लडकियों के रूप में इक अजीब सी चमक और लावण्या देखा जा सकता है , पर इसका रूप मुरझाया , आँखे गहरी थोड़ी झूरिया लिए हुए , बाल लम्बी पर हमेशा दो केला चोटी ( हमारे स्कूल में सबको इसी तरह से बाल बनाना था , चाहे दो उंगली लम्बे केश क्यों न हो ) तो आराम से कमर को छूती थी . अजीब सी छिपी हुई मुस्कान थी उसकी , स्वस्थ शरीर वाली पौलिना इक साधारण कद काठी की हलके सावले रंग वाली लड़की थी मेरे लिए . बहुत कम ही बात करती थी किसी से , और बाकी आदवासी लडकिय भी कुछ खास बात नहीं करती , टिफ़िन के वक्त बिलकूल गायब हो जाती थी .

बात कब कहा से शुरू की पौलिना से याद नहीं पर कुछ बाते जो मैंने उत्सुकता वश उससे पूछी थी , उसका जवाब उसने बिना लाग लपेट किये इतनी सहजता से दिया की मैं आज भी स्तबध रह जाती हूँ. इक दिन मैंने उससे पूछ दिया की तुमलोग को टिफ़िन टाइम में खाने के लिए ऐसा क्या दिया जाता है की वो गंध बर्दास्त नहीं होता . ये सवाल आदिवासी लडकियों और हम डेस्कोलोर्स के बिच इक बहुत ही बड़ा ही विवादास्पद प्रश्न था, जिसे मेरे पहले भी कुछ लडकियों ने पूछा अपनी आदिवासी दोस्तों से तो उन्हें मुह की खानी पड़ी उस प्रशन के उत्तर के रूप में . किसी ने इक बार पूछा तो उसे इक आदिवासी लड़की ने अमीरी गरीबी की बिच खिंची सारी रेखाए गिनवा दी थी. इक बार दो डेस्कोलार्स लडकिय उस खाने पर बात कर रही थी तो हमारे स्कूल की प्रिंसिपल जो इक नन / सिस्टर थी ने बहुत ही रूखाई से खबर ली थी .पर ये जटिल प्रश्न कई लडकियों के मन में तो रहा की ये भोजन इतना तीव्र गंध क्यों देता है . किसी ने बताया की ये गेहू का भात खाते है इसलिए , कोई बोला ये डबल बॉयल्ड चावल है ( मुझे उस वक्त डबल बॉयल्ड चावल का अर्थ बिलकूल समझ नहीं आता था ) पौलिना के चेहरे पर मेरे प्रश्न से कोई भी फर्क नहीं देखा , अरे रमा इतना लोग का खाना बनता है , सस्ता चावल गेहू लाते है , इसलिए महकता है , जो मिल जाए सब ठीक है , पर रमा ये बुरा नहीं है , सफाई से बनता है , शरीर पर लगता है , सब लडकिय गरीब घर से है , मुफ्त में पढाई लिखाई , खाना रहना आसान नहीं है . उसका ये जवाब मेरे दिमाग में छाये सारे दुर्गंध को कब का हटा चूका था. और पौलिना के लिए इक ख़ास जगह भी बन गयी थी कही दिल में .

डेस्कोलोर्स में शायद इक मैं ही पौलीना से बात करती थी और सच ये था की वह भी किसी से बात नहीं करना चाहती थी . पर उसका ये अलगाव क्यों था ये समझ नहीं आता . स्कूल में इतना वक्त नहीं की कोई इतना जवाब तलब करे , पर कुछ बात आज याद कर उन प्रशनो का जवाब मिलता हुआ सा लगता है . गर्मी छूटि या कोई पूजा की बड़ी छूट्टी होनी थी तो टिफ़िन क वक्त स्कूल के मैदान में आदवासी लडकिय जो अक्सर हॉस्टल चली जाती थी , पर उस दिन मैदान में फैली हुई थी और साथ दिख रहे थे कई लड़के . मैंने उन्हें देख ही रही थी पौलिना पर नज़र पड़ी , मैंने पूछ दिया ये सब इनके घर के लोग होंगे न पौलिना, छूट्टी के पहले मिलने या कुछ बात करने आये है ...
रमा तूम बच्ची हो , कुछ नहीं समझती , सबका यार आया हुआ है ...
यार , मतलब पौलिना..
यही बात करते क्लास में चले गए , घंटी बज चुकी थी , वो लडकिय भी धीरे धीरे मैदान से ओझल होने लगी . क्लास में पौलिना से पीछे के बेंच पर बात जारी रही .
यार ...नहीं समझी बुधू ...लड़का दोस्त है उनका ...अभी ही मिल सकते है न...फिर छूट्टी हो जाएगी तो नहीं मिल पाएंगे
मै बिना कुछ कहे उसकी बात सुने जा रही थी ..
तूम छोटी हो , नहीं समझती ..मैं उम्र में तुमसे बहुत बड़ी हूँ , तुम मेरा शरीर देखो , ये बड़ी लड़की का होता है , सामने के बेंच पर टेरेसा टूडू को दीखते हुए कहा वो भी बड़ी है तुमसे , मेरे से छोटी है..देखो उसका शरीर कितना भरा भरा है , .टेरेसा भी पौलीना के साथ ही आई थी , पर वह सामान्य व्यवहार वाली ही लड़की लगी . सुन्दर थी , पौलीना की तरह अलगथलग नहीं रहती थी , पर उस दिन पऔलीना ने मेरे नज़र का नजरिया उस उम्र के हिसाब से शायद ३६० डिग्री घूम चूकी थी . उसने मुझे आगे बैठी आरती हंसदा और सुचित्रा मुर्मू की गहरी दोस्ती का राज बताया . सुचित्रा कोई नेता की बेटी है , इस बार इलेक्शन हार गया , पैसे वाली है , आदिवासी होने से क्या होता है , आरती की इसकी इसलिए पटती है , दोनों का यार है , उसी पर दोनों खुसुर फुसर करते है .यहाँ लगबग सबका यार है रमा ...

आज की रमा होती तो पूछती पौलिना से तुम्हारा यार कहा है , शायद तुम्हारा नहीं आपका बोलती ,उसकी उम्र का अंदाज़ा हो चूका है मुझे वो पैतीस की रही होगी . शायद शादीशुदा हो या न भी हो , या पति छोड़ चूका हो . पता नहीं क्या क्या नहीं सोचा मैंने पौलिना को लेकर और सोचना भी लाज़मी था , इक बार उसने अपने विषय में बता ही दिया जिसकी वजह से उसकी यादो से और भी ज्यादा प्यार हो गया .

अक्सर वहा हॉस्टल की लडकिया बाल धोने के लिए स्कूल से इक या दो किलोमीटर दूर नदी में जाती थी , लौट कर वे क्लास में ही बालो में एक खास तेल लगाती थी. मुझे ऐसे उसका भी गंध बर्दास्त नहीं होता था, पौलीना से उस तेल के लिए पूछा तो वह तेल का बताते हुए अपनी कहानी बता दी . उसने बताया की उसके खेत में यही तेल होता है , याद नहीं पर पूछने पर बताया की चार काठा / बीघा / एकड उसका जमीन है . चार भाई और भौजाई है ..
.सब मारता था रमा , खाना कपडा भी नहीं देने लगा ..
जब फादर गाव आया तो उसको पता चला मेरे बारे में तो भाई से झगडा सुलझाया और जमीन मेरे नाम करवाया , फिर व्ही बोला की स्कूल में चलो पढने , तो हम तैयार हो गए और यहाँ आ गए पढने .
फादर पैसा देते है खेती का ...मैंने सीधे यही पूछ डाला
हां फादर पैसा देता है मुझे ...
सवाल आज कई है पौलीना से पूछने के लिए पर उस वक्त मैं चुप रह जाती थी . उसकी हर इक बात मेरे लिए नई थी , किसी से बोला नहीं , क्योकि इतना तो समझ गयी थी उसने मुझ पर विश्वाश किया था . आखरी बार मैं शायद आठवी या सातवी क्लास में एडमिशन के वक्त मिली जब पापा के साथ स्कूल गयी थी . उस वक्त हॉस्टल में काफी कम लडकिया थी , उसे जैसे देखा तो पापा को रूकने को बोलकर उससे मिलने गयी खेल के मैदान के ऊपर वाले हिस्से पर .मुस्कुराते हुए मिली .
तुम्हारा पापा है ?.
हा , मेरे पापा है ..एडमिशन के लिए आये थे ..

पापा की तरफ देखा ,वे बुला रहे थे ,मैंने पौलीना को बाय कर पापा के तरफ चल दिया ..कुछ बात हुई भी नहीं पीछे पलट कर हाथ उठाते फिर से बाय किया , उसने भी कंजूस वाली मुस्कान दी. ये नहीं पता था की ये आखरी मुलाकात है पौलीना से , क्लास शुरू हुआ पर पौलीना नज़र नहीं आई. शायद उसके लिए इस पढाई से खेती ज्यादा जरुरी हो , शायद शादी हो गयी हो , शायद कही फादर कोई नौकरी लगा दिए हो ...जब भी बैठती युही कितने शायदो की बारिश कर उसकी याद को साफ़ कर लेती हूँ ...

पौलीना ने मेरी सोच को इक नया आयाम दिया था ,आज उसे मैं अपने जीवन में व्यवहारिक दुनिया को दीखाने वाली प्रथम गुरु मानती हूँ .

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