ममता
से मुलाकात कोर्रेस्पोन्डन्स MBA कोर्स के पहले क्लास के दौरान हुई थी
बात शायद उसी ने पहले की थी क्योकि उस दिन मेरे लिए सब कुछ नया और उत्सुकता
से भरा हुआ था CP तक आना बेरसराय से और आकाशदीप बिल्डिंग को ढूंढना उस
कनॉट प्लेस में और ग्यारव्ही मंजिल पर आयोजित पहले इंट्रो क्लास में आना,
सब कुछ मेरे लिए नया था , एकदम नया था , उस नए अहसास ने मुझे मौन कर रखा था
संयोग से लगभग सारे लोग जो उस सेंटर से इस कोर्स के लिए निबंधित थे ,
उनका आना हुआ सब अलग व्यवसाय और पृष्ट्भूमि के लोग , लगभग सौ लोग होंगे
शायद दस पंद्रह महिलाये हो , अब तो ममता के सिवा कोई याद भी नहीं वह पांच
फ़ीट सात इंच की होगी और और थोड़ी भारी भरकम काया की मालकिन .वैसे देखने में
अच्छी थी . इक बड़ा सा पर्स ऐसे ले चलती थी जैसे वह पर्स नहीं बोरा हो
जिसके बोझ से वह किनारे से थोड़ा झुक कर चलती. इक दो लाइन ही बात हुई होगी
की पता चला की वह बिहारी मूल की है . वह शादीशुदा और इक तीन साल के लड़के
की माँ थी ,उसने बताया की वह दो तीन अच्छी कंपनी में काम कर चुकी है पर
अभी बेटे के छोटे होने की वजह से ब्रेक ले रखा है .
दूसरी मुलाकात में मैं उससे कुछ खुल पाई जब उसने पूछा की कही नौकरी के लिए प्रयास कर रही हो मैंने बताया की अभी प्रयास जारी है , इस बात पर उसने मुझसे किसी जॉब कंसल्टेंसी का नाम बता कर कहा की वह लोगो को उनकी प्रोफाइल के अनुसार जॉब लगवा ही देते है और अच्छे से मार्गदर्शन भी करती है मैंने पता माँगा तो कहा की वह फ़ोन नंबर उस कंसल्टेंसी का दे देगी. जब दिल्ली जैसे शहर में अकेले हो और नौकरी की चाह रखते हो तो ऐसे बाते दिल को तस्सल्ली देती है .
इधर मै नौकरी के लिए कुछ साक्छात्कार से गुजरी , कही सफलता लगी तो काम पसंद नहीं आया , जहा काम पसंद था उन्हें हम उपयुक्त नहीं लगे . थोड़ी निराशा घिरने लगी थी की ममता याद आ गई , मैंने उसको कॉल किया की उस कंसल्टेंसी का नंबर दे देती तो शायद कोई रास्ता निकल आये पर उसने फ़ोन पर कहा की नंबर तो ढूंढना होगा , बाद में कॉल करने पर वह नंबर दे देगी . ऐसा ही कुछ तीन चार बार हो गया फिर मैंने उचित समझ की मैं नंबर मांगने की गलती न ही करू तो अच्छा रहेगा मेरे लिए . इसी बीच इक छोटी से नौकरी मैंने कर ली . वीकली क्लासेज में ममता से मुलाकात हो जाती . मुझे देखते ही वह चहक उठती , क्लास में हुए इक इक टॉपिक पर विस्तार से बात करती मेरे से. मुझे उतना लगाव या इच्छा नहीं रहती बात करने की , पर चलो कोई तो बात करता है वाली हालत से गुजर रही थी , इसलिए आराम से झेल जाती थी . अगर किसी क्लास को वह मिस कर जाती तो दुसरे दिन या उसी दिन उसका कॉल आता की क्या हुआ , कौन सा टॉपिक पर चर्चा हुई .
इक बार "आर्गेनाईजेशन" और उससे जुड़े कुछ टॉपिक पर इक फैकल्टी आई थी. उन्होंने कुछ टॉपिक पर किसी किताब की फोटो कॉपी दी सबको . अब वीकली क्लास में बीस पचीस लोग ही आते थे . ममता उस दींन नहीं आई थी , उसने मुझे फ़ोन किया , मेरे द्वारा फोटो कॉपी दिए जाने वाली बात जानकर वह बेचैन हो गयी " रमा मेरे तो मिस हो गया न , कौन कौन से टॉपिक है क्या है " उसने इतना पूछा की मेरे मुह से निकल गया की " अपना पता दे दो मैं ये फोटो कॉपी कुरियर कर दूंगी " वह अचानक से शांत हो गई " सच में कुरियर कर दोगी, मैंने कहा हा , अपना पता दो . उसने मुझे अपना पता लिखवा दिया .दुसरे दींन मैं जब दफ़्तर गयी तो लंच ब्रेक में अपने बॉस से बहार जाने की इज़ाज़त मांगी तो पूछा की कहा जाना है , मैंने बताया की कुरियर करना है कुछ देर में लौट आएंगे . तो बॉस ने पूछा कहा का है , बताया की दिल्ली का ही है . तो उन्होंने मेरे हाथ से लिफाफा ले लिया कहा जा आराम कर मैं भिजवा दूंगा . यहाँ दफ़्तर से ढेर सारे कुरियर जाते है उसीमे ये भी चला जायेगा , मैंने पैसे निकाले तो कहा की " रमा ये दस बीस रूपये एडजस्ट हो जाते है इतने कुरियर के बीच . मैं थैंक्स बोल कर निश्चिन्त हो गई .
दो दींन के बाद ममता का कॉल आया . इतनी बात तो उससे अब तक हो ही चुकी थी की उसकी आवाज़ से उसकी मनोदशा को भांप लू. बहुत ज्यादा ही खुश थी ,
पहली पंक्ति फ़ोन पर थी " कुरियर मिल गया "
मेरा ठंडा सा जवाब था ठीक है , नोट्स मिल गए न , अब टेंशन नहीं लेना.
तुमने कुरियर कर दिया था ...
हा , तुम्हे कहा था , तुमसे एड्रेस इसी के लिए लिया था न ...
पैसे लगे न ......
ये बात उसकी अजीब तरह से मेरे जेहन में उतर गई ....ये दस बीस रूपये को लेकर इतना सोच रही है .. पर कुछ कहा नहीं ...
थैंक्स ...ममता ने अजीब विस्मयकारी ख़ुशी जाहिर की ..
तुमने कुरियर कर दिया ....और फिर इक खाली सा आवाज़ मनो कह रहा हो इस बड़े शहर में इतनी छोटी सी बात भी इतनी बड़ी बात मानी जाती है ...
रमा तुम अबी जॉब कर रही हो न
हा ...पर चेंज करना चाहती हूँ ..देखती हूँ
रमा तुम्हे वो कंसल्टेंसी बताया था न ,तुम वहा कॉल करना , अब तो तुम्हे एक्सपीरियंस भी हो गया है , वे अच्छी जॉब लगवा देंगे , मैं तुम्हे उनका नंबर देती हूँ
उसने इक इक कर के चार नंबर लिखवाये , मैंने मुंस्कुराते हुए लिखा और थैंक्स कह कर फ़ोन रख दिया .चारो नंबर आज भी मेरे कॉपी में लिखे है .कभी जरुरत नहीं पड़ी उन नंबर्स पर कॉल करने की . पर हा, कभी दीख जाता है तो कुरियर भी याद आ जाता है और इक हलकी सी मुस्कराहट भी आ जाती है कही से .. ...
दूसरी मुलाकात में मैं उससे कुछ खुल पाई जब उसने पूछा की कही नौकरी के लिए प्रयास कर रही हो मैंने बताया की अभी प्रयास जारी है , इस बात पर उसने मुझसे किसी जॉब कंसल्टेंसी का नाम बता कर कहा की वह लोगो को उनकी प्रोफाइल के अनुसार जॉब लगवा ही देते है और अच्छे से मार्गदर्शन भी करती है मैंने पता माँगा तो कहा की वह फ़ोन नंबर उस कंसल्टेंसी का दे देगी. जब दिल्ली जैसे शहर में अकेले हो और नौकरी की चाह रखते हो तो ऐसे बाते दिल को तस्सल्ली देती है .
इधर मै नौकरी के लिए कुछ साक्छात्कार से गुजरी , कही सफलता लगी तो काम पसंद नहीं आया , जहा काम पसंद था उन्हें हम उपयुक्त नहीं लगे . थोड़ी निराशा घिरने लगी थी की ममता याद आ गई , मैंने उसको कॉल किया की उस कंसल्टेंसी का नंबर दे देती तो शायद कोई रास्ता निकल आये पर उसने फ़ोन पर कहा की नंबर तो ढूंढना होगा , बाद में कॉल करने पर वह नंबर दे देगी . ऐसा ही कुछ तीन चार बार हो गया फिर मैंने उचित समझ की मैं नंबर मांगने की गलती न ही करू तो अच्छा रहेगा मेरे लिए . इसी बीच इक छोटी से नौकरी मैंने कर ली . वीकली क्लासेज में ममता से मुलाकात हो जाती . मुझे देखते ही वह चहक उठती , क्लास में हुए इक इक टॉपिक पर विस्तार से बात करती मेरे से. मुझे उतना लगाव या इच्छा नहीं रहती बात करने की , पर चलो कोई तो बात करता है वाली हालत से गुजर रही थी , इसलिए आराम से झेल जाती थी . अगर किसी क्लास को वह मिस कर जाती तो दुसरे दिन या उसी दिन उसका कॉल आता की क्या हुआ , कौन सा टॉपिक पर चर्चा हुई .
इक बार "आर्गेनाईजेशन" और उससे जुड़े कुछ टॉपिक पर इक फैकल्टी आई थी. उन्होंने कुछ टॉपिक पर किसी किताब की फोटो कॉपी दी सबको . अब वीकली क्लास में बीस पचीस लोग ही आते थे . ममता उस दींन नहीं आई थी , उसने मुझे फ़ोन किया , मेरे द्वारा फोटो कॉपी दिए जाने वाली बात जानकर वह बेचैन हो गयी " रमा मेरे तो मिस हो गया न , कौन कौन से टॉपिक है क्या है " उसने इतना पूछा की मेरे मुह से निकल गया की " अपना पता दे दो मैं ये फोटो कॉपी कुरियर कर दूंगी " वह अचानक से शांत हो गई " सच में कुरियर कर दोगी, मैंने कहा हा , अपना पता दो . उसने मुझे अपना पता लिखवा दिया .दुसरे दींन मैं जब दफ़्तर गयी तो लंच ब्रेक में अपने बॉस से बहार जाने की इज़ाज़त मांगी तो पूछा की कहा जाना है , मैंने बताया की कुरियर करना है कुछ देर में लौट आएंगे . तो बॉस ने पूछा कहा का है , बताया की दिल्ली का ही है . तो उन्होंने मेरे हाथ से लिफाफा ले लिया कहा जा आराम कर मैं भिजवा दूंगा . यहाँ दफ़्तर से ढेर सारे कुरियर जाते है उसीमे ये भी चला जायेगा , मैंने पैसे निकाले तो कहा की " रमा ये दस बीस रूपये एडजस्ट हो जाते है इतने कुरियर के बीच . मैं थैंक्स बोल कर निश्चिन्त हो गई .
दो दींन के बाद ममता का कॉल आया . इतनी बात तो उससे अब तक हो ही चुकी थी की उसकी आवाज़ से उसकी मनोदशा को भांप लू. बहुत ज्यादा ही खुश थी ,
पहली पंक्ति फ़ोन पर थी " कुरियर मिल गया "
मेरा ठंडा सा जवाब था ठीक है , नोट्स मिल गए न , अब टेंशन नहीं लेना.
तुमने कुरियर कर दिया था ...
हा , तुम्हे कहा था , तुमसे एड्रेस इसी के लिए लिया था न ...
पैसे लगे न ......
ये बात उसकी अजीब तरह से मेरे जेहन में उतर गई ....ये दस बीस रूपये को लेकर इतना सोच रही है .. पर कुछ कहा नहीं ...
थैंक्स ...ममता ने अजीब विस्मयकारी ख़ुशी जाहिर की ..
तुमने कुरियर कर दिया ....और फिर इक खाली सा आवाज़ मनो कह रहा हो इस बड़े शहर में इतनी छोटी सी बात भी इतनी बड़ी बात मानी जाती है ...
रमा तुम अबी जॉब कर रही हो न
हा ...पर चेंज करना चाहती हूँ ..देखती हूँ
रमा तुम्हे वो कंसल्टेंसी बताया था न ,तुम वहा कॉल करना , अब तो तुम्हे एक्सपीरियंस भी हो गया है , वे अच्छी जॉब लगवा देंगे , मैं तुम्हे उनका नंबर देती हूँ
उसने इक इक कर के चार नंबर लिखवाये , मैंने मुंस्कुराते हुए लिखा और थैंक्स कह कर फ़ोन रख दिया .चारो नंबर आज भी मेरे कॉपी में लिखे है .कभी जरुरत नहीं पड़ी उन नंबर्स पर कॉल करने की . पर हा, कभी दीख जाता है तो कुरियर भी याद आ जाता है और इक हलकी सी मुस्कराहट भी आ जाती है कही से .. ...
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