Sunday, August 9, 2015

Martha - Story of Aadiwaasi Girl ..मुझे माफ़ करना , मार्था !!

मुझे माफ़ करना , मार्था !!

किसी ने आकर मुझे कहा की सिस्टर ज्योति ने बुलाया है अपने चैम्बर में . थोड़ा अजीब लगा की उन्हें क्या काम होगा मुझसे . सिस्टर ज्योति पढ़ाती नहीं थी , वो स्कूल के एकाउंट्स और बाकी क्रिया कलापो का धयान रखती थी . पर पता नहीं कब मुझसे इक खास रिश्ता बन गया . जब क्लास ४ में थी , तब से ही रोक कर कुछ कुछ पूछ लिया करती . इक बार तो मुझे बुलाकर पूछा " आर यू बेंगोली ?" झट से बोल दिया , जैसे इक रटे हुए तोते की तरह और बड़े कड़क अंदाज में उस छोटी सी उम्र में ( आज सोच कर हंसी आती है ) " नो सिसिटर , आय आम बिहारी , माय पापा इस पोस्टेड हियर , सो आये लिव हियर . उस समय नहीं पता था की आने वाली जीवन में मुझे कितनी बार लोगो को बताना होगा की मैं बंगाली नहीं बिहारी हूँ , ये हूँ वो हूँ ..सिस्टर ज्योति बाकी सिस्टर से अच्छी लगती ,इक खास वजह थी बहुत मधुर बोलती और सुन्दर भी थी ..मेरे से ख़ास लगाव रखती थी तो मेरे लिए गर्व की बात थी , और सबसे बड़ी बात की हिंदी माध्यम का स्कूल होते हुए भी वे मेरे से इंग्लिश में ही बात करती थी . पर उस वक्त सिस्टर ने बुलाया ये बात कही खटकने लगी . बुलाया था तो जाना ही था .
"मे आय काम इन ?'
यस ..
वो चुप रही थोड़ी देर ..मै भी चुप उन्हें घूरती रही ...वो अपने कागजो में व्यस्त थी ..अचानक सर ऊपर कर थोड़े कड़क अंदाज़ में बोला
"दीड यू से एनीथिंग तू मार्था "
"नो सिस्टर"
" बट शी वास सेइंग की ( हिंदी बोलने लगी ) की तुमने ऐसा कहा की ये आदिवासी बस तौलिया ही देंगे और कुछ नहीं अाता इन्हे ( आज भी याद नहीं की सही में क्या कहा था , पर इतना पक्का याद है की मैंने तौलिये का जिक्र किया था )
" पर सिस्टर वो मार्था को नहीं कहा , हम तो दोस्तों से बात कर रहे थे "
" बट यू सेड .."
" यस सिस्टर :
" यू शुड नोट हेव सेड .."
"बट .."
" ऐसा नहीं कहना था , उसने तुम्हे बोलते सुन लिया था , वो हर्ट हुई ..."
मैं चुप रही ..क्या बोलना कुछ समझ नहीं आ रहा था ...खुद में बुरा भी लगा , फिर मार्था पर गुस्सा भी आये ...चुप्पी कायम रही थोड़ी देर ...
कैन गो नाउ ..पर ख्याल रखना , फिर कभी ऐसी बात नहीं बोलना , किसी का दिल दुखने वाला ...फिर मुस्कुरा दी ...
मैं भारी मन से बहार आई , किसी से कुछ भी नहीं कहा और क्लास चली गई ..

ये बात उन दिनों की जब मै अपने कुछ दोस्तों के साथ वर्ग छ के आखिरी दिनों में स्कूल के सारे शिक्षको को विदाई समारोह में क्या दिया जाए इस पर टिफ़िन के वक्त, लगभग रोज कुछ विचार विमर्श करते थे दुमका के मिशन स्कूल में पढ़ते थे , वहा कुल ७५ लडकिया थी जिसमे शायद २० या २५ ही डेस्कॉलरस थी और बाकी आदिवासी लड़किये थी जो हॉस्टल में रहती थी . उन्ही में लड़कियों में इक मार्था हांसदा थी . पढ़ने लिखने में होशियार , थोड़ी एकाकी लगती, पर मैंने पाया की वो हम डेस्कॉलरस से अलग रहती और कुछ आदिवासी लड़की ( गिनी हुई ) जिनसे वो हंस कर बात करती , वरना आमतौर पर उसके शकल पर इक अजीब सी नकारात्मकता के भाव आते थे इसलिए कोई खास बात चित इक वर्ग में होते हुए भी नहीं होती . जब भी क्लास ब्रेक होता वो हॉस्टल को निकल लेती , पर उसके इस अलगावपन की वजह से जो भी मुझे दिख पड़ता मैं जरूर .धयान से देखती और समझने की कोशिश करती .

मेरे उस स्कूल में आज तक जब भी क्लास ६ की विदाई समारोह हुई थी , सरे टीचर्स को इक तौलिया दे दिया जाता था ( जो अक्सर आदवासी अपने पहनावे में प्रयोग करते थे वहा पर के ) मैंने अपने कुछ दोस्तों में ये प्रस्ताव रखा था की इसे बदला जाए तब इक दोस्त ने कहा की हॉस्टल की लडकिया नहीं मानेगी ..उसी पर शायद मैंने ये कहा था की ये सिर्फ अपना चलाते है , तौलिया ही इनके दिमाग में भरा रहता है ... मार्था ने कब सुना ये बात पता नहीं , पर मुझे उसके खबरची ने सुना होगा इसका भरोसा है .

आज मैं मार्था और खुद को देखती हूँ तो पाती हूँ की दो संस्कृति और समुदाय के बीच के रेखा के आर पार खड़े थे हम दोनों . मैं लांघना चाहती थी पर वह हर बार और दूर भाग जाती थी . ये दूरी मैंने गेम्स के पीरियड में भी महसूस किया था , उन्हें खो खो पसंद था , हमलोग तो खेल लेते पर जब कबड्डी की बारी आती तो सब धीरे धीरे हॉस्टल की तरफ खिसक जाती थी क्योकि गेम्स पीरियड अक्सर लास्ट पीरियड हुआ करता था. इक दिन कम्प्लेन करना पारा क्लास टीचर को तब जाकर वे लोग कबड्डी खेलना शुरू किया . आज उम्र और और कुछ अनुभव होने पर महसूस होता है की सब ऐसे नहीं थे , अच्छी खासी आदिवासी की हम डेस्कॉलरस लड़कियों से दोस्ती थी पर कुछ ५ - ६ लड़कियों की वजह से ये दूरिया बढ़ती जा रही थी , हमारी तरफ से कुछ डेस्कॉलरस लडकिया थी जिन्हे उन आदिवासी लड़कियों से कोई मतलब नहीं था , टीचर्स की इक गलती मानती हूँ की दोनों संस्कृति को जाने समझे ऐसा कोई माहोल नहीं बनाया .

खैर , विदाई समारोह हुआ था , मार्था भी शामिल हुई उसमे , सारे टीचर्स को इक स्टील का प्लेट , इक रूमाल और इक पेन दिया गया था और प्रिसिपल को इक बड़ा प्लेट , कटोरा , रुमाल और पेन दिया गया . जितने पैसे जमा हुए ( याद से ३०० से कुछ ज्यादा ) उसमे से ३७ रूपये बचे थे वो प्रिसिपल को दे दिया गया . सब ने पसंद किया था उस छोटे से प्रयास को .

पर हां मेरे और मार्था में दूरी बनी रही , मुझे नहीं याद फिर कभी हम सहज रूप में मिले मार्था से . पर उसे जितना समझ सके थे , वह अभी जहा भी होगी अपने पैरो पर खड़ी होगी , स्वालम्बी होगी , कहने को उसने अपनी पहचान , अपनी संस्कृति का नेम प्लेट लगा रखा था , पर वह बाकी आदिवासी लड़कियों से ज्यादा अपने समाज से बहार की चीजो को समझती थी और जानती थी की उसमे अपना हक़ कैसे और कब लेना है . उम्मीद करती हूँ की वह जहा भी होगी बाकी आदिवासी लड़कियों को भी ये गुर सिखाती होगी . मार्था , तुम्हारी उस हुनर की मैं कायल हूँ आज भी, पर हा तुम्हारा दिल दुखा अनजाने में उसका खेद है ..तहे दिल से माफ़ी मांग रही हूँ


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