Mar 16, 2016 8:03am
बाकी राज्य का पता नहीं , पर अपने बिहार में शिक्षित के नाम पर एक ऐसी फ़ौज खड़ी हो चुकी है जो दसवी और बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण हो चुके है , कई तो स्नातक और पीएचडी भी है, जो अगर ठीक से हिंदी में शुद्ध पांच पंक्ति बोल दे तो आश्चर्य होगा . अंग्रेजी न बोलने के लिए उनके पास बहुत बड़ा हथियार भी मिल गया है कि वे विदेशी चीजो को स्पर्श ही नहीं करते ,बल्कि बोलते भी नहीं . अफ़सोस कि बात ये है कि , इस फ़ौज का ३० % शिक्षा के प्रचार प्रसार में लगा हुआ है ...इनके द्वारा प्रसारित शिक्षा की गुणवत्ता कैसी होगी ..इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है .
अफ़सोस तब और होता है जब पाती हूँ कि , इसमें स्त्रियों का योगदान कुछ ज्यादा ही है . शिक्षक होना एक बहुत ही सम्मानजनक पद है और उस पद की गरिमा को इतने निचले स्तर पर ले जाया चूका है कभी कभी लगता है इस अँधेरे कोटर में कभी रौशनी आएगी भी या नहीं . मेरे कुछ जानकार में कई स्त्रीया इस पद की शोभा बढ़ा रही है , उनके अनुसार ये बहुत आसान काम है , घर का काम भी निबट जाता है और वेतन भी ठीक . कोई झिक झिक और पिक पिक नहीं . माँ बाप भी खुश है ..किसी तरह डिग्री ले लेना है फिर तो कही टीचिंग लाइन में फिक्स करा ही देंगे ..लड़का भी टीचिंग लाइन वाली लड़की से शादी करना चाहता है ...वेतन सरकार का और घर की नौकरी ...बाकी इधर उधर का जोड़ घटाव थोड़ा मोड़ा तो होता रहता है .
एक पुरानी बात भी याद आ गयी ....
जब मैं शायद पहली या दूसरी कक्षा में थी तब औरंगाबाद ( दादा घर) जाना हुआ था , वहा घर के बगल में एक पंडीजी का परिवार था . पंडिताईन को पंडीजी ने कही सरकारी प्राथमिक विद्यालय में सेट कर दिया था. घर से बच्चे उनके, उन्हें ककहरा याद कराते थे रोज ...तब वे विद्यालय जाती थी . शायद अब वे जीवित न हो , उम्मीद कर सकती हूँ कि वे गाय पर निबंध लिखने का ज्ञान ले कर ही मरी होंगी .
कुछ लोग का नजरिया इस मामले में अनोखा है , उनके अनुसार पंडिताईन सेट हो गयी न , बच्चा तो जैसे तैसे पढ़ ही जाता है ..अपने भी तो कुछ पढ़ेगा न उ ...हमहू उसी बोरा छाप विद्यालय से पढ़े है ..हम का अनपढ़ है ...बहस इनसे क्या हो सकती है . आज बोरा छाप न हो कर साइकल , मिड डे मील छाप हो चूका है ...और फिर व्ही बात कि कुछ तो पढ़िए लेता है ..
जारी है ...फिर कभी ...
#chiकू
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