शादी का आलू का सौंदा
आजकल बाजार में सीम / सेम खूब उतरा है , जब जाते है एक पाव् ले आते है सौंदा बनाने के लिए . घर में सब को बहुत पसंद है , माँ को तो इतना पसंद था की दाल चावल सौंदा ही खाती , सब्जी एक तरफ रख देती . आखरी दिनों में तो सौंदा जरुरी हो गया था , खास कर सीम का , क्योकि वे सिर्फ व्ही खाती . माँ की वजह से सौंदा से भावनात्मक लगाव भी है , इसलिए जब तब सौंदा बना डालते है , यादो में माहोल में माँ सा अहसास होता है . गोत्राील सीम का सौंदा तो और भी अच्छा लगता है घर में सबको ,गोत्राएएल का मतलब जिस सीम में बीज जरा बड़े और मोटे होते है , चिपके बीजो को तुलना में . बिहार के मित्र और शायद उत्तर प्रदेश वाले भी सौंदा का अर्थ समझ रहे होंगे , जो न समझे उन्हें पहले तो सौंदा क्या है ये बता दू तब आगे बढ़ू. सौंदा का अर्थ " इंस्टेंट आचार " , जो आचार तुरंत ही खाने लायक हो और बिना वक्त लिए बन भी जाए . नमक पानी में सीम को उबालो फिर पानी निकाल ले और उसमे पिसा सर्सो,हल्दी, तेल और मिर्च मिला दिए और हो गया तैयार सौंदा . सौंदा सिर्फ सीम का ही नहीं बनता , आलू और मूली का भी बनता है . मैं तो जब नए फूलगोभी बाजार में आते है उसके डंठल के मुलायम भाग से रेसे निकाल , उबाल कर भी सौंदा बनाया है . बहुत ही सोंधी खूशबू आती है सौन्दे से , गरम चावल दाल के साथ तो स्वाद दुगुना कर देता है . सौंदा ठण्ड में मैं दो से तीन दिन में ख़त्म कर देती हूँ और गर्मी में तो उसी दिन कोशिश करती हूँ की ख़त्म हो जाए . क्योकि तुरंत उबाल कर मसाला मिलाया जाता है तो गर्मी में तो सौंदा तो बारह घंटे में ही ख़राब होने लगता है , ठण्ड में फिर भी तीन चार दिन तक संभल जाता है सौंदा .
मई या जून रहा होगा , हमलोग सपरिवार एक शादी में अपने एक नज़दीकी रिश्तेदार के यहाँ गए थे, शादी में अक्सर लोग शादी की बाहरी तयारी का बहुत जायजा लेते है . कैसा सजा है , कहा जनवासा होगा , कहा द्वार लगेगा , कौन क्या पहनेगा. वे क्या खा रहे है इसपर कम ही ध्यान रहता है और लड़की की शादी हो तो और ज्यादा ही लचर हो जाता है ध्यान . अक्सर जो लोग शादी में आते है वे शादी के दिन के लिए तयार होने में इतना खोये रहते है की वे क्या खा पी रहे है उसका ख्याल नहीं रहता . ये उन दिनों की बात है जब शादी होटल और हॉल में नहीं होती थी , घर के आस पास के मैदान और आँगन छत से ही काम चल जाता था ...किसी तरह बाराती के लिए कही हाल या घर लिया जाता था.
मैं जैसे अपने रिश्तेदार के घर पहुंची , सीधा थोड़ी हाथ मूह धो रसोई में चली गयी ( उनके यहाँ आप जितनी जल्दी रसोई में भीड़ जाए , आप उतने ही अच्छे है और हम इस मौके से चूकते नहीं grin emoticon ..रसोई में जैसे ही पहले कदम डाला की लगा नाक में कॉर्बन छोड़ते ही ऑक्सीजन की जगह नाइट्रोजन / मैंगनीज पता नहीं क्या सांसो से भीतर गया ...लगा की दम घूँट जायेगा ...वह घर की बड़ी दीदी काम कर रही थी , सोचा की पुच्छू , पर माँ की हिदायत याद रहती , अपनी जुबान पे कंट्रोल रखना , जाने कहा क्या बोल दे , शादी का घर है ...पर दम तो निकले जा रहा था , धीरे धीरे बिना पूछे वह बने खाने के सारे बर्तन को पलट कर देखने लगी , अचानक निचे रखा बड़ा तसला ( गोला डेकची कह सकते है ) पैर से टकराया , ढक्कन हटते ही लगा की कोई केमिकल फैक्ट्री का दरवाजा खोल दिया झट से बंद कर दिया ..
.मैं कुछ बोलती दीदी ने बोला ...आलू का सौंदा है , तीन दिन पहले ही बना दिया सौंदा , सब लोग आएंगे न ...आचार तो तुरंते ख़त्म हो जायेगा , सौंदा चला दिया जायेगा थोड़ा थोड़ा ...यहाँ तो पता है न कितना लोग आते है , सारे रिश्तेदार तो यही रहते है , गाँव से भी आना जाना खूब होगा ...
हां , सही किया ...यहाँ तो सच में बहुत लोग आते है , सारे मामा के परिवार से तो आएंगे ही ...अभी तो सारे चाचा का परिवार भी यहाँ है ...वहा भी शादी है ...मैं उनकी बात में हां तो मिला दिया और थोड़ी देर में सौन्दे की गंध में सामान्य भी हो गयी पर झट से याद आ गया मेरा परिवार , दौड़ कर माँ पापा भाई के पास गयी की कोई भी आलू से सौंदा नहीं खायेगा , चार दिन पुराना है , खासकर पापा को चेताना जरुरी था , वे चुपचाप कुछ भी दो , खा लेते है , भले ही बाद में तबियत ख़राब होने की बात करे .
जिस दिन हम गए , उसके दुसरे दिन से शादी के विध सब शुरू हो गए , काफी रिश्तेदार आये , दोपहर के खाने के वक्त जब खाना परोसा जाता तो आलू का सौंदा भी चलाया जाता , कुछ ये पूछते क्या है ...आलू का सौंदा...ठीक ठीक है दे दो ...दिल थोड़ा सहम कर दो आलू का टुकड़ा परोस देते ...
एक बार उनके तरफ से एक मामा ने टोक भी दिया ...का रे सड़ गया है क्या सौंदा , तभी कोई दीदी बोली नहीं ...सड़ा नहीं है ...पूरा धुप दिखाए छत पर तब बना है सौंदा ...( मैं मन में मुस्कुराती रह जाती )
मै खाना परोसते वक्त पूरा ख्याल रखती मेरे परिवार को ये सौंदा न मिले , हो सके तो मैं ही परोसती .
शादी में हमलोग करीब एक सप्ताह से ज्यादा रहे थे , सौंदा लगभग रोज ही परोसा गया खाने में , सच कहू तो २०% लोग ही नहीं खाए , बाकी सब बिना बोले आराम से खाए वो सौंदा ...
आजकल बाजार में सीम / सेम खूब उतरा है , जब जाते है एक पाव् ले आते है सौंदा बनाने के लिए . घर में सब को बहुत पसंद है , माँ को तो इतना पसंद था की दाल चावल सौंदा ही खाती , सब्जी एक तरफ रख देती . आखरी दिनों में तो सौंदा जरुरी हो गया था , खास कर सीम का , क्योकि वे सिर्फ व्ही खाती . माँ की वजह से सौंदा से भावनात्मक लगाव भी है , इसलिए जब तब सौंदा बना डालते है , यादो में माहोल में माँ सा अहसास होता है . गोत्राील सीम का सौंदा तो और भी अच्छा लगता है घर में सबको ,गोत्राएएल का मतलब जिस सीम में बीज जरा बड़े और मोटे होते है , चिपके बीजो को तुलना में . बिहार के मित्र और शायद उत्तर प्रदेश वाले भी सौंदा का अर्थ समझ रहे होंगे , जो न समझे उन्हें पहले तो सौंदा क्या है ये बता दू तब आगे बढ़ू. सौंदा का अर्थ " इंस्टेंट आचार " , जो आचार तुरंत ही खाने लायक हो और बिना वक्त लिए बन भी जाए . नमक पानी में सीम को उबालो फिर पानी निकाल ले और उसमे पिसा सर्सो,हल्दी, तेल और मिर्च मिला दिए और हो गया तैयार सौंदा . सौंदा सिर्फ सीम का ही नहीं बनता , आलू और मूली का भी बनता है . मैं तो जब नए फूलगोभी बाजार में आते है उसके डंठल के मुलायम भाग से रेसे निकाल , उबाल कर भी सौंदा बनाया है . बहुत ही सोंधी खूशबू आती है सौन्दे से , गरम चावल दाल के साथ तो स्वाद दुगुना कर देता है . सौंदा ठण्ड में मैं दो से तीन दिन में ख़त्म कर देती हूँ और गर्मी में तो उसी दिन कोशिश करती हूँ की ख़त्म हो जाए . क्योकि तुरंत उबाल कर मसाला मिलाया जाता है तो गर्मी में तो सौंदा तो बारह घंटे में ही ख़राब होने लगता है , ठण्ड में फिर भी तीन चार दिन तक संभल जाता है सौंदा .
मई या जून रहा होगा , हमलोग सपरिवार एक शादी में अपने एक नज़दीकी रिश्तेदार के यहाँ गए थे, शादी में अक्सर लोग शादी की बाहरी तयारी का बहुत जायजा लेते है . कैसा सजा है , कहा जनवासा होगा , कहा द्वार लगेगा , कौन क्या पहनेगा. वे क्या खा रहे है इसपर कम ही ध्यान रहता है और लड़की की शादी हो तो और ज्यादा ही लचर हो जाता है ध्यान . अक्सर जो लोग शादी में आते है वे शादी के दिन के लिए तयार होने में इतना खोये रहते है की वे क्या खा पी रहे है उसका ख्याल नहीं रहता . ये उन दिनों की बात है जब शादी होटल और हॉल में नहीं होती थी , घर के आस पास के मैदान और आँगन छत से ही काम चल जाता था ...किसी तरह बाराती के लिए कही हाल या घर लिया जाता था.
मैं जैसे अपने रिश्तेदार के घर पहुंची , सीधा थोड़ी हाथ मूह धो रसोई में चली गयी ( उनके यहाँ आप जितनी जल्दी रसोई में भीड़ जाए , आप उतने ही अच्छे है और हम इस मौके से चूकते नहीं grin emoticon ..रसोई में जैसे ही पहले कदम डाला की लगा नाक में कॉर्बन छोड़ते ही ऑक्सीजन की जगह नाइट्रोजन / मैंगनीज पता नहीं क्या सांसो से भीतर गया ...लगा की दम घूँट जायेगा ...वह घर की बड़ी दीदी काम कर रही थी , सोचा की पुच्छू , पर माँ की हिदायत याद रहती , अपनी जुबान पे कंट्रोल रखना , जाने कहा क्या बोल दे , शादी का घर है ...पर दम तो निकले जा रहा था , धीरे धीरे बिना पूछे वह बने खाने के सारे बर्तन को पलट कर देखने लगी , अचानक निचे रखा बड़ा तसला ( गोला डेकची कह सकते है ) पैर से टकराया , ढक्कन हटते ही लगा की कोई केमिकल फैक्ट्री का दरवाजा खोल दिया झट से बंद कर दिया ..
.मैं कुछ बोलती दीदी ने बोला ...आलू का सौंदा है , तीन दिन पहले ही बना दिया सौंदा , सब लोग आएंगे न ...आचार तो तुरंते ख़त्म हो जायेगा , सौंदा चला दिया जायेगा थोड़ा थोड़ा ...यहाँ तो पता है न कितना लोग आते है , सारे रिश्तेदार तो यही रहते है , गाँव से भी आना जाना खूब होगा ...
हां , सही किया ...यहाँ तो सच में बहुत लोग आते है , सारे मामा के परिवार से तो आएंगे ही ...अभी तो सारे चाचा का परिवार भी यहाँ है ...वहा भी शादी है ...मैं उनकी बात में हां तो मिला दिया और थोड़ी देर में सौन्दे की गंध में सामान्य भी हो गयी पर झट से याद आ गया मेरा परिवार , दौड़ कर माँ पापा भाई के पास गयी की कोई भी आलू से सौंदा नहीं खायेगा , चार दिन पुराना है , खासकर पापा को चेताना जरुरी था , वे चुपचाप कुछ भी दो , खा लेते है , भले ही बाद में तबियत ख़राब होने की बात करे .
जिस दिन हम गए , उसके दुसरे दिन से शादी के विध सब शुरू हो गए , काफी रिश्तेदार आये , दोपहर के खाने के वक्त जब खाना परोसा जाता तो आलू का सौंदा भी चलाया जाता , कुछ ये पूछते क्या है ...आलू का सौंदा...ठीक ठीक है दे दो ...दिल थोड़ा सहम कर दो आलू का टुकड़ा परोस देते ...
एक बार उनके तरफ से एक मामा ने टोक भी दिया ...का रे सड़ गया है क्या सौंदा , तभी कोई दीदी बोली नहीं ...सड़ा नहीं है ...पूरा धुप दिखाए छत पर तब बना है सौंदा ...( मैं मन में मुस्कुराती रह जाती )
मै खाना परोसते वक्त पूरा ख्याल रखती मेरे परिवार को ये सौंदा न मिले , हो सके तो मैं ही परोसती .
शादी में हमलोग करीब एक सप्ताह से ज्यादा रहे थे , सौंदा लगभग रोज ही परोसा गया खाने में , सच कहू तो २०% लोग ही नहीं खाए , बाकी सब बिना बोले आराम से खाए वो सौंदा ...
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