Tuesday, April 12, 2016

नजरिया

नजरिया
नौकरी छोड़ने के बाद , मैं उस कंपनी के एच आर के कहने पर उस दिन कार्यालय गयी थी . उन्होंने मुझे कुछ देर रुकने को कहा , क्योकि वहा और भी लोग आये हुए थे मेरे पहले .अपने अपने काम से. मैं इंतज़ार करने के लिए वहा बने बहुत ही बड़े हालनुमा बैठक में लगे करीब २५ से ३० कुर्सियों की लम्बी दो कतार जो एक कोण में बना रखे थे , उनमे से एक कतार की कुर्सी का चयन कर बैठ गयी. थोड़ी देर अपने हाथ में जो फाइल थे उनके कागज़ उलट पलट कर सर उठाया तो , कुर्सी की दूसरी कतार में बैठे एक शख्स , जिन्हे मैं नाम और शक्ल से जानती थी, पर जान पहचान नहीं थी , वे मुझे हलकी मुस्कराहट लिए देख रहे थे. थोड़ी असहजता हुई, तो फिर अपने को हाथ में रखे कागज में उलझा लिया.

ये महाशय मेरे ही प्रोसेस में काम करते थे और मेरे नौकरी छोड़ने के करीब एक महीने पहले ही नौकरी छोड़ चुके थे क्योकि इनकी नौकरी "विप्रो" के इंटरनेशनल कॉल सेंटर में लग गयी थी . जब ये खबर आई इनकी नौकरी वहा लग गयी थी , तब ही, इनके विषय में कुछ जान पाई थी . प्रोसेस में मेरे शिफ्ट के वक्त कोई इनका मित्र होगा , उसी ने हल्ला किया था " साले की विप्रो में नौकरी लग गयी , वहा ऐसे ऐसे को भी लेते है पता नहीं था" फिर काम करने की जगह पर ही बहुत ही मजाक शोरसराबा हुआ था. पर मेरा कुछ खास मतलब नहीं था. दोस्त है ये सब ,बात अपने दोस्तों के लिए करते रहते है . पर ये सब कुछ एक महीने पहले ही हुआ था , इसलिए इन्हे देख कर सब दिमाग में ताज़ा हो गया . जिस प्रोसेस में तीनो शिफ्ट मिलाकर रजिस्टर्ड १८० लोग काम कर रहे हो और पूरी कंपनी का जोड़े जहा अच्छे खासे प्रोसेस चल रहे हो तो ये आना जाना कोई मायने नहीं रखता . न कंपनी के लिए न वहा काम करने वालो के लिए .

पर जिस व्यक्ति से मेरा कोई वास्ता न हो , वह मुझे देख मुस्करा रहा हो तो थोड़ा तो अजीब लग्न स्वाभाविक है . जैसे ही सर उठाया फिर तो वे महाशय इधर ही घूर रहे थे, मै ज्यादा कुछ सोचती, वे अपनी जगह से उठकर मेरी तरफ आ गए और एक सांकेतिक अभिवादन करते हुए मेरे बगल वाली कुर्सी पर विराजमान हो गए .

आप यहाँ ..कोई काम है ..वेतन तो नहीं फंसा...उन्होंने हलकी मुस्कराहट लिए पूछा
हां , मैंने नौकरी छोड़ दिया एक हफ्ता हुआ ...आखरी महीने का वेतन रुका है ..
अपना भी यही मामला है ...थोड़े इत्मीनान हो गए अपनी कुर्सी पर
आप तो विप्रो में है न...
हां ...वहा पता है मैडम वेतन का कभी कोई प्रॉब्लम नहीं होता ..ये कंपनी सब कुछ तो बड़ा कर लिया पर इनका एकाउंटिंग और एच आर बहुत घटिया है ...मैंने "दक्षः" में भी काम किया मैडम ( जो नहीं जानते हो , इंटरनेशनल कॉल सेंटर में विप्रो , दक्षः, GE उस वक्त क बहुत बड़े नाम थे ..शायद आज भी हो ) वहा भी वेतन को लेकर कभी प्रॉब्लम नहीं हुई ...
मैंने उत्सुक हो कर पूछ बैठी ...अरे आप वहा भी काम किये ...क्यों छोड़ा ..
अरे मैडम छोड़ा नही ...उनकी ट्रेनिंग क्वालीफाई नही कर पाये ...पर तीन महीने वेतन तो मिला और कुछ सधार तो हुआ ही उनकी ट्रेनिग से ...विप्रो में भी हमें पता है क्वालीफाई नहीं कर पाएंगे ..मैडम हम ठहरे इलाहाबाद के ठेठ और ये सिखाते है की इंग्लिश ऐसे बोलो वैसे बोलो ...अपनी तो जीभ ही नहीं पलटती उनकी तरह ...जीभ पलट कर दिखाने लगे ...
मुझे हंसी आ गयी ...उनकी ये हरकते देख कर . बहुत ही सहज होकर बोल रहे थे जैसे वे मुझे जानते हो , उनकी इस सहजता ने हमारी वार्ता को बढ़ाने में मदद की .
पर ३०००० महीना वेतन दे रहे है ...मस्त है ..समझ लीजिये ये तीन महीने मुफ्त का खाना का इतंजाम हो गया ...है न गजब के लोग ये ..इतना वेतन हमें कौन देगा और कही ...आप अब कहा नौकरी कर रही है
कही नहीं ..
तो क्यों छोड़ दी लगी लगाई नौकरी ...
नहीं मेरा मैनेजमेंट कोर्स का दो सेमेस्टर पेंडिंग हो गया है ...दो साल हो गए ..इस बार चुके तो तीन साल हो जाएंगे ...पुरे ९ पेपर दूंगी तो पढ़ने के लिए समय चाहिए ...नौकरी और पढ़ाई एक साथ नहीः हो पाती मेरे से...
अरे छुट्टी ले लेती ..
नहीं बस हो गया इंटरनेशनल कॉल सेंटर का जॉब ...
तो मैनेजर बनना है ...मुस्कुराते हुए कहा
नहीं ...ये तो कॉरेस्पोंडेंस कोर्स है ...रेगुलर वालो को प्लेसमेंट नहीं मिलती ..हमें क्या मिलेगी ...देखते है क्या होना है ...

एक बात पूछे मैडम , बुरा नहीं मानियेगा ...
जी बोलिए क्या पूछना है ...
क्या आप मुसलमान है ..??
अचानक हो रही एक सामान्य बातचीत के बीच ये सवाल मुझे अचंभित कर गया ...फिर भी खुद को सामान्य बने रहने की पूरी कोशिश करते पूछा ...नहीं मैं मुस्लिम नहीं हूँ ....ऐसा क्यों लगा आपको ?
आपके कपडे के रंग के चॉइस की वजह से ...एक अजीब सी मुस्कान दिखी उनकी शकल पर ये बोलते हुए
कैसा रंग कौन चॉइस ...मै हिन्दू हूँ , मेरा नाम हिन्दू की तरह है ... ( इन्हे मेरा नाम नहीं पता था )
तो आप हमेशा काले रंग का ही कपडा क्यों पहनती है ...मै यहाँ तीन महीने काम किया और पाया की आपके ८० तो ९० % ड्रेस काले ही रंग या उसी के कॉम्बिनेशन के थे ...अभी भी देखिये आपका ड्रेस काल रंग में है ...
तो काला मुसलमानो का रंग होता है ...
ये बोल मन ही मन सोचने लगी , ये इंसान जिसे मैंने शायद तीन या चार बार ही अपने शिफ्ट मैं देखा वह मुझे इतना ज्यादा ओब्सेर्वे करता रहा ...सच में मै अपने पिछले कुछ महीने के ड्रेस को दिमाग में सरसरी तौर पर याद करने लगी तो वाकई सब में कला पायजामा और दुपट्टा तो था ही ... फिर खुद को समझाया मेरी मर्जी , कुछ भी पहनू ...खुद को झट धरातल पर लाई और एक और सवाल ठोंक दिया
प्रोसेस में दो टीन और भी तो मुस्लिम लड़की तो आपने देखा ...वे तो काला नहीं पहनती ...
अरे वे तो मॉडर्न मुसलमान है ...आपके ड्रेस उन रियल मुसलमान लड़कियो जैसे होते है ...अगर आप मुसलमान नहीं तो तो उनका प्रभाव रहा होगा ..कोई दोस्त ..माहोल ...
नहीं मेरी कोई भी मुसलमान दोस्त नहीं न ही कोई वैसे माहोल मेंं पाली ...मैं शुद्ध वैष्णव हिन्दू परिवार से हूँ ..( बोलते बोलते रुक गयी ...इसे मैं सफाई क्यों दे रही हूँ ..बकवास लगता ही नहीं बकवास सोच भी इसकी ...)
तो आप ब्राह्मण है ...
नहीं ....बहुत ही रुखाई से बोला
तो कौन जात है आप
गेस कर ले ( मन में गरियाते ...आ ही गए औकात पे )
परसाद है तो बहुत मुश्किल हैं गेस करना ...सब जात ये सरनेम रखता है ...
जी ...
लालू वाला प्रसाद आप नहीं
क्यों ...
अरे हम जानते है न मैडम आपको ...आप वे वाले प्रसाद नहीं है ...यादव आप नही है ..हम दुनिया देखे है ...जात किसी का तुरंत पहचान जाते है ( अभी थोड़ी देर पहले मैं इनके लिए मुसलमान थी )
- बहुत गंभीर हो कर वे गेस कर रहे थे और मैं गंभीर होकर अब एच आर के विलम्ब से और इस महाशय के बकवास से आपे से बाहर होते हुए भी खुद को संभाला हुआ था ...
आप लालू प्रसाद है नहीं , साउथ इंडियन भी नहीं ..बनिया भी नहीं ...कहि आप कायस्थ तो नही ...
जी ...
तब तो अपनी बिरादरी वाली हुई न ( उनका सरनेम श्रीवास्तव था )...आपको बताना चाहिए था न...कितना गेस किया ...आप वैस्नव परिवार में है और कायस्थ भी ....बहुत दिक्कत होगी आपको शादी में ..
क्यों क्या हुआ??? मुस्कुराते थोड़ा झेंपते हुए पूछ लिया ...
कायस्थ लोग नॉन वेज मुसलमान की तरह खाता है ...यहाँ UP में तो वेज खाने वाला कायस्थ मिल भी जायेगा...आपके बिहार में तो बहुत मुश्किल है ...
जी पता है ...
कही और शादी करनी होगी आपको ....
सिर्फ मुस्कुरा कर जवाब दिया उन्हें ...
इस वार्ता के पुरे होते होते तक मैं इस महाशय को शायद ठीक से देखा पहली बार ..पांच फ़ीट दो या तीन इंच के होंगे ...हलके सावले , चश्मे में छिपी आँखे और थोड़ी टेढ़ी जुबान जब बोलते ख़ास कर ...
बात थोड़ी क्लाइमेक्स तक पहुँच गयी थी...बात बदलने की सोच कर पूछ दिया ..कॉल सेंटर का ही जॉब करना है हमेशा ...
नहीं ...मैडम मेरा तो ड्रीम लंदन है ...एम ऐ कर के यहाँ आये ...इसलिए तो अपना इंग्लिश सुधार रहे है ...एक दिन लंदन जरूर र जायेंगे ...
जी ..बिल्कुल जा पाएंगे ....जितना इंग्लिश जानते हैं उससे भी जाया जा सकता है ....
सही कहा ...पर पैसे भी तो चाहिए ...
हो जाएगा वो भी ...आल डी बेस्ट ..
थैंक्स ...आप तो मैनेजर बनियेगा ....दोनों हंसने लगे
तभी एच आर से किसी ने मेरे नाम पुकारा ...झट उठ महाशय से विदा ले एच आर के कमरे तरफ चल पड़ी ...काम होने पर बाहर निकलते ही उनपर नज़र पड़ी . हाथ उठा बाए कर वह से निकल गयी या कहिये भाग निकली ....ईश्वर की कृपा से फिर कभी मुलाकात नहीं हुई उनसे ...
पर हां आज भी काले ड्रेस पर उनका नजरिया और साथ हुई बात याद आती है . उस वक्त मैंने सच में बहुत ज्यादा ही काले ड्रेस पहने थे , पर कोई इतना ध्यान से देख रहा होगा , ये कल्पना नहीं की थी . दुनिया की भीड़ में कौन हमें कौन से रूप में और कौन से नज़रिये से देख रहा है , हम में से किसी को पता नहीं .

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