वक्त की भूल भुलैया से होकर
जाना है क्षितिज तक
एक नई शुरुआत
करनी है वहां से ,
शायद वहां से ,
कोई रास्ता जाता हो
उस रौशनी तक
जो आती है तुमसे
मुझ तक ,
अभी तो चलना ही
शुरू किया है ...
अंत हो इस
अंतहीन यात्रा का
उस क्षितिज पर ...
जाना है क्षितिज तक
एक नई शुरुआत
करनी है वहां से ,
शायद वहां से ,
कोई रास्ता जाता हो
उस रौशनी तक
जो आती है तुमसे
मुझ तक ,
अभी तो चलना ही
शुरू किया है ...
अंत हो इस
अंतहीन यात्रा का
उस क्षितिज पर ...
चले जा रहे
कब से
एक ही दिशा में ,
कोई मोड़ है क्या
उस अंत पथ पर जाने का ..
लग रहा है अब,
यही अंत है
यही शुरुआत है
मैं खुद क्षितिज हूँ
कब से
एक ही दिशा में ,
कोई मोड़ है क्या
उस अंत पथ पर जाने का ..
लग रहा है अब,
यही अंत है
यही शुरुआत है
मैं खुद क्षितिज हूँ
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